ahalya

इस ओर कठिन आश्रम-व्रत ले मुनि से मुदमन
रण-लाघव सीख रहे थे राघव नित-नूतन
अणिमादि सिद्धियाँ स्वयं कर रहीं पद-चुंबन
मिटता था दिन-दिन त्रास असुरगण का, ऋषिगण–
निर्भभ विचरण करते थे

लाते बटोर फल-फूल भक्ति-भावना-सहित
वनवासी कोल-किरात सरल छल-छंद-रहित
प्रभु-दर्शन कर, पाते जैसे जीवन का हित
सुर-मुनि-भय-भंजक चरित राम के नव नित-नित
भू-ताप हरण करते थे