ahalya

मच गयी खलबली असुरों के साम्राज्य-बीच
आया सुबाहु दुर्बाहु, क्रुद्ध मारीच नीच
दोनों ने मिल माया की संचित शक्ति खींच
वर्षा की बूँदों-से विषिखों से दिया सींच
मुनि का वह शांत तपोवन

स्मित उठे राम जय-भयातीत, सुख-दुख-अकाम
आत्मा का ज्यों आलोक सिद्धि-क्षण में ललाम
हर लिया एक शर ने सुर-संशय, रिपु-सुनाम
माया का पर ने भेद आवरण, अमरधाम–
पहुँचाये निखिल असुर-गण