ahalya

हो गया ढेर पल में सुबाहु-मुख-बाहु-हीन
रथ, अश्व, पदातिक, सैन्य दिवातम-से विलीन
सागर के पार उड़ा शर खा मारीच दीन
जो बचे, फिरे छवि-क्षीण, पुन: लौटे कभी न
भूले भी आश्रम की दिशि

सज गये साज़ मंगल के तोरण-कलश-द्वार
नभ-सुमन-वृष्टि, मुनि करते वैदिक महोच्चार
‘जय राम! अखिल जग-शक्ति-शील-सौन्दर्य-सार
त्रय-ताप -हरण, भव-शरण करण-कारण उदार
पा तुम्हें विगत माया-निशि