ahalya

आँखों में काजल की गहरी रेखा आँकी
वेणी में गूँथे सुमन, भाल बिंदी टाँकी
ओंठों पर क्रीड़ामयी, जयी, मृदु स्मिति बाँकी
करुणा-ममताकुल, फिर से तरुणाई झाँकी
भौंहे साँपिन-सी डोलीं

सब अंग कदम्ब कुसुम से फूले सिहर-सिहर
प्राणों में गूँज उठा ज्यों मधुऋतु का मर्मर
मृग-नयनी मृगया को बैठी मृग-सी कातर
अंतर का सारा कोष चढ़ाये पलकों पर
रति की प्रतिकृति-सी हो ली