anbindhe moti

ये दिन तो ऐसे ही होते हैं

छिपती सकुच सिहरती कलियाँ
दूँढा करतीं मधुपावलियाँ
स्वर्ण पराण-रेणु से झिलमिल
हँसती वन-कुंजो की गलियाँ
रज के कण-कण मधुर मिलन के चित्र सँजोते हैं

उर में विश्वासों के अंकुर
साँस-साँस में बजता नूपुर
किसी अपरिचित के स्वागत में,
सजते प्राण प्रणय को आतुर
मूर्त कल्पना और सत्य का अंतर खोते है

नित नव प्रेम-व्यथाएँ सहता
जीवन मधुर सुरों में बहता
यौवन-मोह चतुर्दिक मन के,
स्वर्ण-जाल-सा लिपटा रहता
नयनों में झिलमिल आशा के सपने सोते है

ये दिन तो ऐसे ही होते हैं

1942