anbindhe moti

रूप नहीं खोता है
खो जाते जन-हृदय पके फल पर जैसे तोता है
रूप नहीं देखे जाने से कभी विकल होता है
सारी रात तरुण उर को देता रहता न्‍यौता है
रूपसियों सो जातीं तब भी रूप नहीं सोता है
सुंदर लगता रूप हँसी में सुंदर जब रोता है
हँसकर फूल खिलाता, रोकर मोती ही बोता है
रण-गाथा, यश-वैभव-गीतों का नीरव श्रोता है
रंग सबों का हँसकर बाँकी चितवन से धोता है
धन्य कला वह कलाकार जिसने काता, व्यौंता है
जग तो मूक माधुरी में खाता रहता गोता है
रूप नहीं खोता है

1941