bali nirvas

मधुप तुम भूले प्रीति पुरातन
सूख रहा नयनों के सम्मुख प्यारा नंदन कानन
छुटतीं  नहीं हास-फुलझड़ियाँ,चलते हैं दृग-बाण न
आठ पहर रोटी वनरानी  नीचा करके आनन
लता-विटप उलझे, झुलसे तृण, फिरते मृग-पंचानन
बिना तुम्हारे उजड़ गयी वह सुषमा आनन-फानन