bhakti ganga

तेरी करुणा आड़े आयी
जब भी भावी ने छिपकर मुझ पर तलवार चलायी

जब कटु कर्मलेख उभरे थे
हुए ह्रदय के घाव हरे थे
तूने सिर पर हाथ धरे थे

व्यथा नहीं टिक पायी

जब स्मृति की विषवेलि सँजोयी
कटी न काटे, धुली न धोयी
तेरी क्षमा दृष्टि ने सोयी

आशा-ज्योति जगायी

जब मन में भय संशय जागे
‘पता नहीं क्या होगा आगे’
तेरी सुध आते ही भागे

कुल विचार दुखदायी

तेरी करुणा आड़े आयी
जब भी भावी ने छिपकर मुझ पर तलवार चलायी