bhakti ganga
प्रेम प्रभु चरणों में दृढ़ होता
तो क्या देख काल को बढ़ते, तू यों धीरज खोता!
दुर्लभ भाग्य जिन्होंने पाये
रहे अमित बल, विभव जुटाये
वे भी सिन्धु-तीर जब आये
डरे न खाते गोता
मोह-पाश मन से न हटाता
अमरों से न जोड़ता नाता
पाकर भी जलनिधि लहराता
रहे कूप को रोता!
बहुत, यहाँ तूने जो पाया
श्रम का फल श्रम में ही आया
क्यों चाहे , इस जग की माया
आगे भी हो ढोता
प्रेम प्रभु चरणों में दृढ़ होता
तो क्या देख काल को बढ़ते, तू यों धीरज खोता!