bhakti ganga

मन का विष हरण करो हे!
वरण करो, वरण करो, वरण करो हे!

ताप-तप्त जीवन हो अभय, नाथ!
छोड़ो न हाथ कभी,
रहो सदा रजनी में साथ-साथ
छिन्न घोर तम का आवरण करो हे!

मन का विष हरण करो हे!
वरण करो, वरण करो, वरण करो हे!