bhakti ganga
मन! जान रहा है जब तू, जो भी पाये खोना है
जो मिल न सका जीवन में, क्यों फिर उसका रोना है
वह मिल भी जाता तो क्या! इच्छा पूरी हो पाती
जितना ज्यादा मिल जाता उतनी अतृप्ति बढ़ जाती
कोई कुछ भी कर ले पर, परिणाम वही होना है
कितने तेरे आगे थे, कितने पीछे आयेंगे
दो दिन दुनिया में अपना डंका बजवा जायेंगे!
सब को रो-गाकर आखिर धरती में ही सोना है
मन! जान रहा है जब तू, जो भी पाये खोना है
जो मिल न सका जीवन में, क्यों फिर उसका रोना है