bhakti ganga

मेरे सँग-सँग चलने वाले!
देखूँ, अब आगे बढ़ने की तू क्या युक्ति निकाले

जब पथ का हर मोड़ नया हो
पथिक हारकर बैठ गया हो
तेरी भी यदि नहीं दया हो

उसको कौन सँभाले!

कितने साथी पथ पर छूटे
कितने रत्न काल ने लूटे
जाऊँ किधर, स्वप्न वे टूटे

जो चिर-दिन थे पाले

प्रश्न विकल करता अब मन को
‘चलने से क्या लाभ, चलूँ जो’
काँप रही है आस्था की लौ

तम से इसे बचा लो

मेरे सँग-सँग चलने वाले!
देखूँ, अब आगे बढ़ने की तू क्या युक्ति निकाले