bhakti ganga
मेरे जीवन-स्वामी!
कैसे भुला दिया तुझको मैंने, ओ अंतर्यामी!
कैसे ऐसे सत्यानाशी भाव ह्रदय में आये
‘मैं अपने बल से चलता हूँ तेरे बिना चलाये!’
’कैसे भूल गया मैं तेरी करुणा कण-कण-गामी
क्यों है इतना मोह मुझे निज क्षणभंगुर काया पर
सतत भटकने की चिंता से क्यों रहता मन कातर
यदि विश्वास मुझे है मेरी बाँह किसी ने थामी!
मेरे जीवन-स्वामी!
कैसे भुला दिया तुझको मैंने, ओ अंतर्यामी!