bhakti ganga
मेरे अंतर में छा जाओ
जनम-जनम की प्यास बुझे, प्रभु! ऐसा रस बरसाओ
कितने भी दो आगे-आगे
शिशु को राज-भोग मुँहमाँगे
अपने घर की सुधि जब जागे
उनसे भुला न पाओ
बीत गये दिन खेल खिलाते
कभी हँसाते, कभी रुलाते
क्यों, पल भी जो ठहर न पाते
वही खिलौने लाओ
पत रख ली तुमने मीरा की
मिली सूर को बाँकी झाँकी
तुलसी ने मानस में आँकी
जो छवि, मुझे दिखाओ
मेरे अंतर में छा जाओ
जनम-जनम की प्यास बुझे, प्रभु! ऐसा रस बरसाओ