bhakti ganga

इसमें तेरी कौन बड़ाई
रोता देख वत्स को, अम्बा! यदि तू दौड़ी आयी!

शिशु शशि के हित भी हठ ठाने
अगम-सुगम के भेद न जाने
बिना दिये माता कब माने

कर थोड़ी चतुराई

पिता रहे चुप नीति-ज्ञान दे
सुत के रोने पर न कान दे
लाख कर्मफल का प्रमाण दे

माँ तो भुला न पायी

पुत्र गिरे भू पर खा ठोकर
उठा न लेती जननी बढ़कर!
क्या, यदि मुझको लगे निरंतर

   तू है दाँयीं-बायीं!

इसमें तेरी कौन बड़ाई
रोता देख वत्स को, अम्बा! यदि तू दौड़ी आयी!