bhakti ganga

एक बस तुझसे बनी रहे
चिंता क्या मुझको, फिर सारे जग से ठनी रहे!

उठें लाख तूफान, क्षितिज-भ्रू-रेखा तनी रहे
तेरी होकर भी मेरी लय क्यों अनमनी रहे!

शक्तिरूप भी शक्तिहीन, निर्धन यह धनी रहे!
आस्था-पारस-मणि पाकर भी मन क्यों ऋणी रहे!

जब गुलाब के सिर पर तेरी छाया घनी रहे
क्यों न भला उसकी हर पँखुरी मधु से सनी रहे!

एक बस तुझसे बनी रहे
चिंता क्या मुझको, फिर सारे जग से ठनी रहे!