bhakti ganga
हार नहीं मानूँगा
बाजी एक हार भी जाऊँ, और नयी ठानूँगा
गरजे व्योम, जलद घहरायें
कितनी भी हों क्रूर दिशायें
आयें, जो पवि-पाहन आयें
मैं सीना तानूँगा
यह संसार भले ही छूटे
आस्था की दृढ़ डोर न टूटे
रूप रचा कितने भी झूठे
तुझको पहचानूँगा
हार नहीं मानूँगा
बाजी एक हार भी जाऊँ, और नयी ठानूँगा