bhakti ganga
कितने बड़े हाथ हैं तेरे!
सदा किये रहते हैं छाया जो मस्तक पर मेरे!
सारी निशि तम की चादर से रहते मुझको घेरे
और प्रात में रवि-कर से कर देते दूर अँधेरे
सोते-जगते, दुख-सुख में, घर-बाहर, साँझ-सवेरे
मेरे चारों ओर निरंतर देते हैं ये फेरे
कितने बड़े हाथ हैं तेरे!
सदा किये रहते हैं छाया जो मस्तक पर मेरे!