bhakti ganga
कोई साथ न होगा
पर क्या आगे-आगे तू भी, मेरे नाथ! न होगा!
शब्द जीभ पर नाचा करता
पर अंतर में नहीं उतरता
क्यों प्रतिपल हो यह कातरता
यदि हो यह विश्वास ह्रदय को, कभी अनाथ न होगा!
माना देकर भी यह जीवन
सुख-सम्मान-श्रेय का साधन
तू देता ही रहता क्षण-क्षण
पर मेरा भी प्रत्यावर्तन खाली हाथ न होगा
कोई साथ न होगा
पर क्या आगे-आगे तू भी, मेरे नाथ! न होगा!