bhakti ganga
खेल लेने दो मन के दाँव
फिर न पलटकर आऊँगा मैं इस सपनों के गाँव
क्या बाजी जीते या हारे!
हैं जादूई खेल ये सारे
जाने कल किस घाट उतारे
यह कागज़ की नाव
पा थोड़ी सिक्कों की ढेरी
कर ली थी कुछ हेरा-फेरी
अब तो चाल मंद है मेरी
काँप रहे हैं पाँव
मैं ही क्या, जो-जो भी आये
गये यहाँ से शीश झुकाये
बस दो दिन ही रही टिकाये
यह पीपल की छाँव
खेल लेने दो मन के दाँव
फिर न पलटकर आऊँगा मैं इस सपनों के गाँव