bhakti ganga

छोड़ मत देना पथ के बीच
मुझे भटकते देख नाथ मत आँखें लेना मींच

ज्यों अब तक पथ लगा न भारी
पा अहेतुकी कृपा तुम्हारी
त्यों ही आगे भी, गिरधारी!

हाथ न लेना खींच

मैंने जग का सुर भी साधा
अंतिम तार तुम्हीं से बाँधा
राग भले ही गूँजा आधा

रसघट दिये उलीच

पर जाने क्यों अब मन मेरा
शंकित सम्मुख देख अँधेरा
चिंता, भय, दुविधा ने घेरा

सूझे ऊँच न नीच

छोड़ मत देना पथ के बीच
मुझे भटकते देख नाथ मत आँखें लेना मींच