bhakti ganga
जब तक हाथों में है वीणा
तब तक यों ही छिड़ा करेंगी तानें नित्य-नवीना
यद्यपि ध्वनियाँ काँप रही हैं
पिछली बातें आज नहीं हैं
श्रोता भी हो नये, वहीं हैं
पर उँगलियाँ प्रवीणा
जब तक तेरा स्वर न चुकेगा
क्यों मेरा ही हाथ रुकेगा!
कभी न जय का केतु झुकेगा
शक्ति भले ही क्षीणा
जब तक हाथों में है वीणा
तब तक यों ही छिड़ा करेंगी तानें नित्य-नवीना