bhakti ganga

तुझको पथ कैसे सूझेगा!
जब तक तेरे सम्मुख से यह दर्पण नहीं हटेगा !

पीछे तिमिर, तिमिर है आगे
तू फिरता है इसको टाँगे
जब तक मिले न ज्योति, अभागे !

यह जड़ क्या कर लेगा !

कितनी बार गया तू लूटा
रँग सभी बिम्बों का छूटा
फिर भी तेरा मोह न टूटा —

‘दर्पण सदा रहेगा’

झूठे सभी चित्र जब तेरे
क्यों मन को ममता से घेरे
जब निकलेगा बड़े अँधेरे

मन ही भार बनेगा

तुझको पथ कैसे सूझेगा!
जब तक तेरे सम्मुख से यह दर्पण नहीं हटेगा !