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दसवाँ दृश्य

(स्टेशन का दृश्य, सुरेश और छाया उसी बेंच पर बैठे हैं जिस पर प्रथम अंक में शिरीष और सुरेश बैठे थे।)

सुरेश– इसी रोमांटिक बेंच पर हजरत से पहले-पहल भेंट हुई थी।
छाया- अब तो यह क्लासिकल हो गयी (हँसती है)।
(सुरेन्द्र सिंह, महेश सिंह, दीवानजी, मनोहर सिंह, हरिमोहन, शिरीष, रमेश और शारदा का प्रवेश |)
सुरेश– तो आप लोग आख़िर आ ही गये? नमस्कार, शिरीष बाबू? इतने एहसानों के बाद, अब तो आपको एक पॉलिशी और ले ही लेनी चाहिए।
शिरीष – एहसान!
सुरेश– पहला एहसान तो यह है कि आपकी बीबी आपको सही-सलामत लौटा दी। दूसरा एहसान कि आपको शौचालय की कैद से छुड़ाया।
शिरीष – (शर्माकर) लीजिये, कितने का चेक दूँ।
सुरेश – बस केवल एक हजार का। पहले साल की किस्त।
(शिरीष चेक देता है।)
मनोहर सिंह – अच्छा आपने भी इंस्योरेन्स करवाया है.
सुरेन्द्र सिंह – जी हाँ, सब बुद्धिमान आदमी करवाते हैं। मेरा तो हो नहीं सकता था पर मैंने अपने दीवान का करवा दिया है। हाल की घटनाओं के बाद तो आपको अपनी लड़की का भी
बीमा करवा देना चाहिए।
दीवानजी – (मनोहर सिंह से) सुना है आप बीमा का विरोध करते थे। आपकी तो इन्होंने ऐसी बीमा करवायी है कि जिन्दगी भर, नहीं पुस्त-दर-पुस्त किस्तें चुकाते रहिएगा।
(सब हँसते हैं)
हरिमोहन – छाया! क्या इस बार बी. ए. की परीक्षा में नहीं बैठेगी?
सुरेश – अजी, इनकी तो फाइनल परीक्षा हो गयी।
हरिमोहन – ठीक है, छाया को दुलहा मिल गया। अब वह अपने वादे के अनुसार वहाँ मेरे लिए एक दुलहन ढूँढ़ देगी। आप उसकी सहायता कर देंगे। मैं भी इन्स्योरेन्स-एजेन्ट बनकर आऊँगा।
सुरेश – एक क्या, आपके लिये तो एक दर्जन ढूँढ़ सकता हूँ। आप आयें भी।
रमेश – पिताजी, छाया की शादी हो गयी, अब मैं जिंदा रह कर क्या करूँगा?
(पास से एक सीसी निकालकर पी जाता है और धड़ाम से गिर जाता है। सब घबड़ा कर उसे उठाते हैं। सुरेन्द्र सिंह चिल्लाते हैं।)
सुरेन्द्र सिंह – जल्द डाक्टर बुलाओ, मैं तो लुट गया। एक ही लड़का है।
दीवानजी – घबराइए मत सरकार! यह जहर नहीं है, शरबत है। मुझे बहुत तंग किया करते थे कि मुझे जहर ला दीजिए, छाया को पीने की धमकी दूँगा। तंग आकर मैंने इन्हें चकमा दिया है।
रमेश – (आँखे खोलकर) तो मैं मरा नहीं हूँ?
सुरेन्द्र सिंह – अरे वाह रे, मेरे दीवान!
सुरेश – अजी, आपके दीवान के आगे तो ग़ालिब का दीवान भी मात है।
(काली का प्रवेश)
काली – सरकार, गाड़ी आ गयी।
(बड़े लोग सब एक ओर हो जाते हैं)
सुरेश – (छाया से) चलो चलें।
हरिमोहन – भूलिएगा मत जीजाजी, दुलहन ढूँढ़कर रखिएगा।
सुरेश – जरूर, जरूर, आइ. ए. एस. दुलहन | आपकी पहली बहस उसीकी अदालत में होगी। (छाया के साथ जाना चाहता है।)
रमेश – मेरे लिए भी।
सुरेश – अरे, आप तो मेरे भावी साढू हैं। घबराइए मत, चार वर्ष बाद छाया तो पके हुए अमरूद की तरह उतर जायगी और कामिनी कामिनी की तरह खिल जायगी। तब मुझे भी आपसे ऐसी ही ईर्ष्या होगी जैसी आपको मुझसे हो रही है।
रमेश – लेकिन तब तक तो इन्तजार में मैं ही बूढ़ा हो जाऊँगा। कामिनी हीरोइन लायक हो भी गयी तो मुझे हीरो कौन बनाएगा?
(गाड़ी सीटी देती है)
सुरेश – मैं बनाऊँगा, रमेशजी ! आप मेरी फिल्म-कम्पनी में हीरो बनिएगा।
(गाड़ी जाती है)
हरिमोहन – चलिए घर चलें।
(सब जाते हैं)

(पटाक्षेप)