bikhare phool

अब ये फूल-फूल रस भीने
कितना तप-तप कर पाई है यह शोभा धरती ने!

तीर प्रखर थे रवि किरणों के
उपल-वृष्टि, झंझा के झोंके
किसमें साहस था पथ रोके

पर इनका मधु छीने!

फूल भले ही ये कुम्हलाये
यहाँ देर तक ठहर न पायें
पर न मलिन होंगी मालायें

जो दीं गूँथ किसी ने

अब ये फूल-फूल रस भीने
कितना तप-तप कर पाई है यह शोभा धरती ने!