bikhare phool

जीवन फिर-से भी यदि पाऊँ
ये स्नेहीजन, ये अलबेले मित्र कहाँ से लाऊँ

जाने पुण्य उगे थे कैसे
मिले पिता, माता, गुरु वैसे
बीते जो दिन सपने जैसे

कहाँ ढूँढ़ने जाऊँ

वह सम्मान मिला, यश छाया
धन्य हो गयी मानव-काया
जो परिवार, प्रिया-सुख पाया

सोच-सोच पछताऊँ

चारों ओर लगा हो मेला
रहूँ भीड़ में किन्तु अकेला
जिनका विरह न जाये झेला

कैसे उन्हें भुलाऊँ!

जीवन फिर-से भी यदि पाऊँ
वे स्नेहीजन, वे अलबेले मित्र कहाँ से लाऊँ