bikhare phool
उठ-उठकर अतीत के तल से
चित्र-एक-से-एक उभरते आते हैं झलमल-से
कभी जाग उठती तरुणाई
प्रथम प्रेम लेता अँगड़ाई
दिखती छाया-मूर्ति लजाई
मुँह ढँकती करतल से
कभी हृदय में लिये विकलता
रुक जाता हूँ चलता-चलता
कोई चुंबन देकर जलता
लगती वक्षस्थल से
कितने नयनों की अभिलाषा
पढ़ लेता हूँ अलिखित भाषा
पीकर भी बुझती न पिपासा
पर छवि के मृगजल से
उठ-उठकर अतीत के तल से
चित्र-एक-से-एक उभरते आते हैं झलमल-से
1995