bikhare phool
कैसे कह दूँ–‘था संयोग!’
निश्चय ही वह रहा हमारे सत्कर्मों का योग
विस्तृत जनसंकुल धरती पर
जाने दूर कहाँ से आकर
जब हम थे मिल गये परस्पर
बिना किये उद्योग
चिर-परिचित उस परिचय के क्षण
एक हुए जब दोनों के मन
गत जन्मों का ही था बंधन
कह दें कुछ भी लोग
अब यह हृदय और क्या माँगे!
जब भी कभी मिलें हम आगे
यही प्रेम जीवन में जागे
मिले यही सुख-भोग
कैसे कह दूँ–‘था संयोग!’
निश्चय ही वह रहा हमारे सत्कर्मों का योग
1994