chandni
चाँदनी पर्वत की बाला
गुन-गुन गाती धीमे-धीमे
मधुर स्वप्न दुहराती जी में
बैठी शून्य विजन-घाटी में
गूँथ रही माला
बाम पार्श्व में बहता निर्झर
कभी देख लेती मुख झुककर
फैल रहा दिशि-दिशि भू-नभ पर
स्मिति का उजियाला
वय किशोर, वन में यों मूर्तित
बैठी हार गूँथती है नित
बेध न गया अभी कोमल चित
बाण कुसुमवाला
चाँदनी पर्वत की बाला
1941