chandni

आज हँसो मधु-हासिनी!
प्रकृति आज बनकर आयी है मानव-हास-हुलासिनी

खुले खेत में धुली चाँदनी
चित्रित रंग-स्थली-सी बनी
तुम माणिक-छवि-दद्युति से अपनी

विलसित करो विलासिनी!

चरण-कमल धर शैल-श्रृंग पर
उतरो, सुंदरि! जैसे निर्झर
रहें देखते अखिल चराचर

परियाँ. स्वर्ग-निवासिनी

उमड़े महोल्‍लास से सागर
बँघें तरंगों में अगणित स्वर
सम्मोहन के मंत्र खींचकर

मुस्का दो नभ-वासिनी!
आज हँसो शशि-हासिनी!

1941