chandni

खिल रही सामने भोली और अजान जैसी चाँदनी
जैसी है प्राण तुम्हारी मृदु मुस्कान, वैसी चाँदनी

अलसित कलियों को खिला रही पल मूँदके
कंचुकि पर लग अघात रहे हिम-बूँद के
कूजित मधुवन, वल्लरियाँ क्षण-क्षण काँपतीं
दिग्वधुएँ झुक-झुक अधरों में स्मिति चाँपतीं

रुक, ढूँढ़ रही अपने को ही नादान कैसी चाँदनी !

अंबर पर किरण-हिंडोल लगाकर झूलती
माधुर्य-भाव से छाती रह-रह फूलती
गोरा मुख, कजरारे नयनों में फाग-सा
दिप रहा गुलाबी रंग देह से आग-सा

जैसा सुंदर है चाँद, छवि की खान वैसी चाँदनी

कर से समीर के पत्र छीनकर बाँचती
नटखट सखियों में भौंह नचाकर नाचती
तितली के पकड़े पंख तिरी नभ-गंग में
लो, फिरती भू की ओर विलास-तरंग में

बरबस लिखवाता मेरे कवि से गान, ऐसी चाँदनी
जैसी है प्राण तुम्हारी मृदु मुस्कान, वैसी चाँदनी

1941