diya jag ko tujhse jo paya

करुणा, क्षमा, दया, प्रायश्चित
क्या ये सभी शब्द झूठे हैं, कर्म-भोग ही नियम अबाधित!

क्या सेवक न तुम्हारा हूँ मैं!
क्यों प्रभु! बिना सहारा हूँ मैं?
क्यों निज मन से हारा हूँ मैं?

रह पाता न असंग, अशंकित

संवेदना-शून्य रह क्षण-क्षण
काल कर रहा जग का भक्षण
और देखते रहते जड़ बन

तुम भी विवश हो कि निष्ठुर-चित?

मैं न तपस्वी, मुनि या योगी
हूँ प्रभु! सतत विषय-रस-भोगी
जाने, गति आगे क्या होगी

यदि न करो करुणा मेरे हित!

करुणा, क्षमा, दया, प्रायश्चित
क्या ये सभी शब्द झूठे हैं, कर्म-भोग ही नियम अबाधित!