diya jag ko tujhse jo paya
कृपा तो कभी तुम्हारी होगी!
मैं तो गाता जाऊँगा, माँ! जब तक तुम सुर दोगी
कुछ सर दे सरदार कहाये
कुछ बन भक्त तुम्हें हैं भाये
पर जो कोरे शब्द सजाये
क्या पाये वह ढोंगी!
अगणित बाधा-विघ्न पार कर
फिर भी मैं आ गया द्वार पर
क्या यदि बैठा यहाँ हार कर!
सुधि तो कभी करोगी!
पर प्रसाद भी मन यदि चाहे
क्यों न प्रथम निज प्रेम निबाहे!
यह क्या कम, निज भाग्य सराहे
बना काव्य-रस भोगी
कृपा तो कभी तुम्हारी होगी!
मैं तो गाता जाऊँगा, माँ! जब तक तुम सुर दोगी