diya jag ko tujhse jo paya
क्या फल, लौट यहाँ फिर आये
यदि कोई इन प्रेमभरे मित्रों से मुझको फिर न मिलाये!
आत्मा अक्षय है, यह माना
यह भी माना, फिर है आना
पर क्या निज परिवेश पुराना
फिर यह जीव दुबारा पाये!
यद्यपि चाह यही, चलते क्षण
करें न विकल मोह के बंधन
पर कैसे भूलें वे प्रियजन
दिन थे जिनके साथ बिताये!
मिलते यदि न पूर्व के साथी
तो जग से ममता ही क्या थी!
आत्मा तो बस यही मनाती
फिर वे मिलें,जहाँ भी जायें
क्या फल, लौट यहाँ फिर आये
यदि कोई इन प्रेमभरे मित्रों से मुझको फिर न मिलाये!