diya jag ko tujhse jo paya
इसीमें पाया है विश्राम
कविता बन तेरी करुणा ही बरस रही प्रतियाम
जब भी महाकाल हो घेरे
हारें तंत्र-मंत्र सब मेरे
शब्द शुभाशिष बनकर तेरे
बाँहें लेते थाम
मैंने कोई योग न साधा
तुझको बस शब्दों में बाँधा
पल में हटती कुल भव-बाधा
लेते आधा नाम
क्यों भटकूँ यश वैभव पाने!
जग मुझको कवि भी मत माने
यह वर दे, तेरी करुणा ने
किया मुझे निष्काम
इसीमें पाया है विश्राम
कविता बन तेरी करुणा ही बरस रही प्रतियाम