diya jag ko tujhse jo paya
भुलाता सारे दुःख संताप
इस सरस्वती के मंदिर का एक क्षीण आलाप
यदि तू द्वार-निकट भी आकर
सुन ले इसकी वीणा के स्वर
जीवन जाय मधुरता से भर
मिटें त्रिविध भवताप
यहाँ कभी विच्छेद नहीं है
ऊँच-नीच का भेद नहीं है
राग-द्वेष, भय-खेद नहीं है
है सुख-शान्ति अमाप
करुणा, क्षमा, प्रेम की वाणी
यहाँ गूँजती चिर-कल्याणी
कुल चिंता जानी-अनजानी
मिटती अपने आप
भुलाता सारे दुःख संताप
इस सरस्वती के मंदिर का एक क्षीण आलाप