diya jag ko tujhse jo paya
मैं तो जल पर बिम्ब तुम्हारा
मिटा सकेगी कैसे मुझको काल-सरित की धारा?
कितना भी डोले मन संशय, भय के झोंकों द्वारा
यह विश्वास अटल है, मैं हूँ कभी न तुमसे न्यारा
दिखूँ भले ही श्याम-श्वेत, स्थिर-गतिमय, मीठा-खारा
पर ये तो जल के गुण हैं जिस पर मैं गया उतारा
एक लहर का साथ नहीं भी मिलता मुझे दुबारा
पर कैसे टूटेगा, प्रभु! शाश्वत संबंध हमारा!
मैं तो जल पर बिम्ब तुम्हारा
मिटा सकेगी कैसे मुझको काल-सरित की धारा?