diya jag ko tujhse jo paya
मैंने पत्र-पुष्प जो पाये
सदा देहली पर भक्तों की डलिया से ही आये
कुछ अनजाने गिरे द्वार पर
कुछ भक्तों ने दिये कृपा कर
मैंने प्रभु करुणा पर निर्भर
दिन निष्फल न गँवाये
पूजा में अर्पित इनकी छवि
पावन भी हो ज्यों मंत्रित हवि
कीट बना इनमें मेरा कवि
जग कैसे अपनाये!
पर क्या पता कि कभी यहाँ पर
पड़ें चरण वे जिनको छूकर
पतित देहली का यह पत्थर
चिर पूजित बन जाये!
मैंने पत्र-पुष्प जो पाये
सदा देहली पर भक्तों की डलिया से ही आये