diya jag ko tujhse jo paya
मैंने गीत यहाँ जो गाये
पता नहीं, किस दिव्य शक्ति ने मुझसे हैं लिखवाये
क्या यह धन जो मुझे सहेजा
नभ से किसी सुकवि ने भेजा?
या चिति के गत जन्मों में जा
मैंने ये स्वर पाये?
इनमें बंधन है, विमुक्ति भी
विरह-व्यथा भी, मिलन-युक्ति भी
योग-सिद्धि भी, भोग-भुक्ति भी
ये दुख में सुख लाये
भर मैंने निज आत्मा के स्वर
जग-सम्मुख अब इन्हें दिया धर
कभी तुम्हें इनको सुन-सुनकर
मेरी सुधि भी आये
मैंने गीत यहाँ जो गाये
पता नहीं, किस दिव्य शक्ति ने मुझसे हैं लिखवाये