diya jag ko tujhse jo paya

मोल तेरा कोई क्‍यों आँके
तू ही आड़े है घन-सा जब अपनी रश्मि-छटा के !

सहकर शंभु-जटा की कारा
पूज्य बनी सुरसरि की धारा
प्रकटे क्या न लोक-क्षय द्वारा

श्लोक अमर गीता के !

तूने चुन-चुन फूल निरंतर
रच तो दीं मालायें सुंदर
उन्हें भारती पहनेगी, पर

तेरी भी बलि पाके

ज्योति सदा उत्तरी अंबर से
रत्न निकलते रत्नाकर से
क्यों जग माने तेरे स्वर से

फूटे स्रोत सुधा के !

मोल तेरा कोई क्‍यों आँके
तू ही आड़े है घन-सा जब अपनी रश्मि-छटा के !

अगस्त 01