diya jag ko tujhse jo paya
राग जो भी अंतर से आया
उसको ही शब्दों में सज मैं जग के सम्मुख लाया
पर ज्यों अभिनय कर अभिनेता
अपने वचन भुला झट देता
सुर जो जन-मन को छू लेता
मैंने आप भुलाया
कभी मुक्ति की युक्ति न साधी
यही सोच, बस, आशा बाँधी
जब नभ-पथ से आयी आँधी
लघु तृण भी उड़ पाया
अब हताश, जीवन-संध्या में
प्रभु! तेरी चौखट हूँ थामे
भक्तों की पदरज ही पा मैं
धन्य करूँ निज काया
राग जो भी अंतर से आया
उसको ही शब्दों में सज मैं जग के सम्मुख लाया