diya jag ko tujhse jo paya

लिये प्रभु! यह गीतों का हार
मैं तो यों ही खड़ा रहूँगा चाहे खुलें न द्वार

माना, इनमें राग न लय है
कोरे शब्दों का संचय है
पर क्या मेरा विकल हृदय है

तुम्हें न रहा पुकार!

मेरे अंतर का यह लेखा
करो भले ही तुम अनदेखा
कवि बन द्वार-निकट रहने का

कुछ तो है आधार

ज्ञानी, भक्त, सिद्ध, मुनि, योगी
आयें जो दर्शन-सुख-भोगी
झलक तुम्हारी उनमें होगी

लूँगा जन्म सुधार

लिये प्रभु! यह गीतों का हार
मैं तो यों ही खड़ा रहूँगा चाहे खुलें न द्वार