ek chandrabimb thahra huwa
प्रवृत्तियाँ हमारी बाधक क्यों हैं !
और यदि वे सचमुच बाधक हैं
तो फिर इतनी उन्मादक क्यों हैं !
किसीकी मुस्कान मन को प्यारी लगती रहे,
उसे सतत देखने की इच्छा जगती रहे,
इसी तरह तो रूप की प्रशंसा हो सकती है।
कोई उसकी कलाकृति पर आकर्षित ही न हो,
क्या कलाकार की कभी यह मंशा हो सकती है !