ek chandrabimb thahra huwa

वे पद-चिह्न मिट चुके हैं
जो रेत पर हमने साथ-साथ उगाये थे;
हमारे पद-चिह अब भी उभरते हैं,
पर वे पास आने से डरते हैं,
अपने होकर भी हम कितने पराये थे!