geet ratnavali

‘प्राण देकर भी वचन निभाते!
रघुकुल की यह रीति आप नित मुझको थे बतलाते

सुधि है, अग्नि साक्ष्य दे मुझको
कभी आपने वचन दिये जो!
कैसे आज उन्हें पल में यों

मन से, नाथ! भुलाते!

करने दो वचनों का पालन
स्वर्ग सिधारे पिता, राम वन
किये आपने भी जो-जो प्रण

क्यों न ध्यान में लाते!

सास, ससुर, देवर, ननदोई
प्रभु के सिवा न जिसका कोई
लाज न आती, बन निर्मोही

उसे छोड़कर जाते!

‘प्राण देकर भी बचन निभाते
रघुकुल की यह रीति आप नित मुझको थे बतलाते