geet ratnavali
बात तेरी सच है यह माना,
पर संन्यासी बन मुझको घर-घर है अलख जगाना
नहीं भक्ति मेरी होगी कम
पर यदि, प्रिये! साथ होंगे हम
निभ न सकेगा वह तप-संयम
जो अब मन में ठाना
यह न शोक करने का अवसर
हर्षित चित से मुझे विदा कर
तू भी प्रेम वही रख प्रभु पर
जो मुझसे है जाना
जो अणु-अणु में किये बसेरा
पति अब वही जगत्पति तेरा
रोक न, प्रिये! भक्ति-पथ मेरा
बुन यों ताना-बाना
बात तेरी सच है यह माना,
पर संन्यासी बन मुझको घर-घर है अलख जगाना