geet ratnavali
आपके प्रभु ने यही सिखाया!
जनकसुता भी क्या न गयी वन, बनकर पति की छाया!
राज्य गँवा पांडव निकले जब
द्रुपदसुता क्या साथ न थी तब!
मनु ने त्यागी शतरुपा कब
भोग न भले सुहाया!
यज्ञ, दान, जप, तप, तीर्थाटन
पत्नी बिना न सकें पूर्ण बन
शिव शव, विधि गूँगे, हरि निर्धन
साथ न हो यदि जाया
हों भी आज मुक्तिपथ-गामी
छोड़ें यो न बाँह जो थामी
पति के सिवा जगत में, स्वामी!
शरण कौन दे पाया!
आपके प्रभु ने यही सिखाया!
‘जनकसुता भी क्या न गयी वन, बनकर पति की छाया!