geet ratnavali

राम के साथ काम टिक पाता!
मेरे मन में स्थान कहाँ अब जिसमें अन्य समाता!

जब था मुझे काम ने घेरा
दूर किया तूने भ्रम मेरा
करके याद अनुग्रह तेरा

रत्ने! सिर झुक जाता

पर अब तो लौ लगी राम से
हैं पत्नी, परिवार वाम से
तू भी जुड़ जा उसी नाम से

जो है मुक्ति-प्रदाता

सौंप, प्रिये इस चंचल मन को
नर रूपी उस नारायण को
धन्य करूँगा मैं जीवन को

तोड़ जगत से नाता

राम के साथ काम टिक पाता!
मेरे मन में स्थान कहाँ अब जिसमें अन्य समाता!