geet ratnavali

रत्ना! तू जीती, मैं हारा
पर निज प्रभु को सौंप चुका मैं अब यह जीवन सारा

ऋणी सदा नारी का है नर
जिसे जिलाती वह मर-मरकर
सुधि तेरी भी लेगा मत डर

जिसने मुझे पुकारा

घेर न मुझको अश्रुकणों से
कर विमुक्त परिणय-वचनों से
जुड़ने दे हरि के चरणों से

छूटे यह भव-कारा

नाम भले ही जग ले मेरा
देखे नहीं त्याग-तप तेरा
किन्तु राम के धाम बसेरा

होगा साथ हमारा

रत्ना! तू जीती, मैं हारा
पर निज प्रभु को सौंप चुका मैं अब यह जीवन सारा