geet ratnavali

करूँ क्या! हाय! बता अब, माई।
अपने ही हाथों मैंने इस घर में आग लगायी

रात यहाँ आ बिना बुलाये
स्वामी ने कपाट थपकाये
सोच-सोच ‘असमय क्‍यों आये !’

मैं मन में सकुचायी

शंकित उस क्षण लज्जा, भय से
वचन कहे जो कुछ निर्दय-सें
सुनकर उनके मुख पर जैसे

दिव्य ज्योति-सी छायी

यद्यपि काल-रात्रि थी बाहर
चले गये वे मुझे छोड़कर
कितना भी रोऊँ जीवन भर

अब देंगे न दिखाई

करूँ क्या! हाय | बता अब, माई।
अपने ही हाथों मैंने इस घर में आग लगायी